भगवान गौतम बुद्ध को आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे हुई – वैशाख पूर्णिमा और बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति

Gautam buddha image

बुद्ध पूर्णिमा को भागवत बुद्ध को आत्म ग्यान की प्राप्ति हुई थी। Gautam Buddha aur Gyan ki prapti

सिद्धार्थ जब कपिलवस्तु की सैर पर निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को देखा उन्होंने सबसे पहले एक बूढ़े व्यक्ति को देखा तो उन्होंने अपने सारथी से पूछा की यह कौन है।

तब सारथी ने कहाँ की यह एक बूढ़ा व्यक्ति है तब सिद्धार्थ ने पूछा की यह बूढ़ा व्यक्ति क्या होता है तो उनके सारथी ने कहा कि एक दिन सभी को बुढ़ा होना है। तब सिद्धार्थ ने पूछा की मैं भी बूढा हो जाऊंगा? तो सारथी ने कहा  हा एक दिन आप भी इनके जैसा हो जायेंगे। फिर सिद्धार्थ और आगे बढे तो उन्होंने एक बीमार व्यक्ति को देखा तो सिद्धार्थ ने फिर सारथी से पूछा की यह कौन है। तब वह सारथी बोला यह एक बीमार व्यक्ति है, यह किसी को हो सकता है। 

इसके बाद वह और आगे बढे तो सिद्धार्थ ने एक शव को देखा फिर वह सारथी से पूछते है कि यह क्या है, तब सारथी बोला यह सब एक मृत व्यक्ति को लेकर जा रहे है इस संसार में जो जन्मा है उसको एक दिन मृत्यु को प्राप्त होना ही है।

फिर वह अंत में एक सन्यासी को देखा फिर वह सारथी से पूछते है तब वह सारथी बोला की यह एक सन्यासी है यह अपना घर, परिवार और सारी सम्पति का त्याग कर साधु बनकर भगवान की पूजा करता है। यह सब देखने के बाद वह बहुत दुःखी हुए इसलिए वह सत्य की खोज के लिए अपने राज्य को त्यागकर निकल गए वनों की ओर सत्य की खोज के लिए।

गौतम बुद्ध छः वर्ष तक कठोर तपस्या के पश्चात् भी कोई लाभ नही हुआ । समाधी की आठ अवस्था होती है गौतम उन सभी अवस्था को प्राप्त कर लिए थे मगर फिर भी वह जानते थे की यह जीवन की सम्पुणता नही है उनके अंदर अब भी ज्ञान पाने की तीव्र इच्छा थी जब सारे उपाय बेकार गये। 

तब उन्होंने अंतिम मार्ग का सहारा लिया। जिसे समाना कहते है। समाना साधको का मूल पहलू यह है कि वह कभी भी भोजन मांग कर नही खाते अगर भोजन मिला तो उसे ग्रहण करते है अन्यथा वह भोजन नही मांगते केवल कठोर तप करते है इस तरह गौतम का शारीर इतना निर्बल हो गया कि जीवन के नाम पर केवल उनकी श्वास ही चल रही थी।

फिर एक दिन गौतम बुद्ध निराश होकर सोचने लगे मैंने अभी तक कुछ नही प्राप्त किया गौतम यह सोच रहे थे । तभी कुछ स्त्री गौतम के समीप से गुजर रही थी वह सभी स्त्री संगीत गाने वाली थी।

वह आपस में चर्चा करती है कि। वीणा के तार इतना अधिक न कसो और इतना ढीला भी मत छोङो की मधुर स्वर ही न निकले, उसे बस माध्यम में कसो । 

यह सुनकर गौतम ने कठोर तपस्या का मार्ग त्याग दिया और युक्तिपूण संयमित होकर आहार ग्रहण करते हुए, माध्यम मार्ग को अपना लिया और उस बोधि वृक्ष के समीप बैठ गए।

पूर्णिमा का चन्द्र उग रहा था। भगवान बुद्ध को परम ज्ञान की प्राप्ति हुई।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top