नारी महत्व पर निबंध हिंदी में – Essay on importance of women in india in hindi

 

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प्रस्तावना – भारतीय समाज में नारी सदा से सम्माननीय रही है हमारे यहां विश्वास है जहां नारी का सम्मान होता है वही देवता निवास करते हैं नारी के बिना मानव जीवन का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। नारी के बिना जीवन नीरस, शुष्क और व्यर्थ हो जाता है। नारी का गौरवपूर्ण इतिहास हमें नारी उत्थान की ओर सोचने को विवश करता है। नारी प्रतिदिन उत्थान की ओर अग्रसर है।

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विभिन्न युगों में नारी का उत्थान – नारी प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में उच्च स्थान रखती हैं। प्राचीन युग में गृहालक्ष्मी माने जाने वाली नारी का सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक कार्यों में पुरुष के समान भाग लेने का पूर्ण अधिकार प्राप्त था। स्त्रियां चारों आश्रमों में प्रविष्ट होती थी और वेद-पाठ करती थी। युद्ध के दौरान पुरुषों के साथ नारी भी भाग लेती थी। गृहस्थी का पूर्ण दायित्व यद्यपि उनके ऊपर था, किंतु वे परतंत्र और दासी नहीं थी। किंतु देश की परतंत्र के साथ नारी भी परतंत्र होती चली गई।

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वर्तमान काल की नारी – आधुनिक काल नारी चेतना के जागरण का काल है। सदियों की दासता से दुखी नारी सहानुभूति का पात्र बनी। बंगाल में राजा राम मनोहर राय और उत्तर भारत में स्वामी दयानंद सरस्वती ने नारी को पुरुष के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए बिगुल बजाया। कवि-वाणी ने भी नारी की स्वतंत्रता की मांग की। पंत जी कहते हैं- मुक्त करो नारी को मानव, चिर वंदिनी नारी को। नारी को पुनः देवी सहचरी और प्रेयसी का गौरवपूर्ण पद प्राप्त हुआ है। नारियों ने सामाजिक धार्मिक, राजनीतिक एवं साहित्य के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़कर कार्य किया है। विजय लक्ष्मी पंडित, कमला नेहरू, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, इंदिरा गांधी, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी, अमृता प्रीतम, शिवानी आदि अनेक नाम ऐसे हैं जो सदा है जो सदा स्मरण किए जाएंगे।

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उत्थानशील नारी का कर्तव्य– उत्थानशील नारी का अपना भी कुछ कर्तव्य है। वर्तमान में देखने को मिल रहा है कि नारी पाश्चात्य सभ्यता का सम्मान और भारतीय आदर्श का अपमान कर रही है। नारी ने उत्थान का अर्थ भोगवादी बनने से लिया है। नारी दया, कोमलता, स्नेह, समर्पण, विश्वास त्याग, बलिदान शक्ति-शौर्य, एकनिष्ठा जैसे आदर्शों को भूल रही है। ऐसे में नारी का यह कर्तव्य है कि वह उन आदर्शों की रक्षा कर आगे बढ़े, जिनके कारण आज तक सम्मान मिला है।

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नारी के प्रति राष्ट्र और समाज का कर्तव्य – समाज और राष्ट्र का भी कर्तव्य है कि नारी को अपने उत्थान में सहयोग दें, और उन्हें प्रोत्साहित करें। समाज और राष्ट्र को चाहिए कि वह नारी की मर्यादा की जी जान से रक्षा करें और उन्हें अपने उत्थान के लिए उपयुक्त वातावरण दे। आज भी समाज में नारी तमाम तरह के बंधनों से जकड़ी है। राष्ट्र और समाज नारी को इन बंधनों से मुक्ति दिलाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करें, तब नारी-उत्थान किसी सीमा तक सफल हो पाएंगे
उपसंहार – यद्यपि आज नारी भोगवाद के आकर्षण में फंसी हुई है, परंतु यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि नारी अपनी मध्यकाल में खोई हुई प्रतिष्ठा को प्राप्त कर चुकी हैं। अब नारी दया की पात्र नहीं है। वह अपने इर्द गिर्द के बंधनों को तोड़ने के लिए बेचैन है। सरकार द्वारा भी नारी-उत्थान की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसी प्रकार का एक पड़ाव बालिका गर्व भी है, जो महिलाओं के उत्थान का एक प्रमुख सोपान बनेगा। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में नारी उत्थान, राष्ट्र-उत्थान का संकल्प आज लेना चाहिए।

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