राष्ट्रप्रेम पर निबन्ध – hindi me deshprem par nibandh

 

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भूमिका – प्रत्येक सच्चे मानव में देश-प्रेम का भाव भरा रहता हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने देश की उन्नति के लिए हमेशा ही तात्पर्य रहता है। किसी भी देश का निर्माण उसकी सीमाओं से नहीं होता है, बल्कि उसमें रहने वाले अलग-अलग सांस्कृतिक पहलुओं से होता है। हर क्षेत्र के लोगों की एक अलग सांस्कृतिक पहचान होती है, इसलिए लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान तथा सभ्यता को बनाए रखने के लिए अपने देश की सीमा का निर्माण करते हैं। और अपने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। जिससे एक सशक्त और अखंड राष्ट्र का निर्माण होता है।

जिनमें देश-प्रेम नहीं होता और जो अपने तुच्छ स्वार्थों की सिद्धि के लिए देश का बड़े से बड़ा अहित करते है उन्हें देशद्रोह कहते है। ये शत्रुओं से मिलकर अपने देश का भेद बतलाते है। तस्करी और चोरबजारी द्वारा अपने देश की आर्थिक व्यवस्था को बिगाड़ने का काम करते है। जयचंद्र और मानसिंह प्रत्येक युग में होते आये है और होते रहेंगे, लेकिन इससे निराश होने कि कोई बात नहीं है। स्वदेश प्रेम की लहरे बराबर अबाध गति से बहती चली आ रही है। जिनमे स्वाभिमान और स्वदेश प्रेम नहीं होता वह बिल्कुल ही पशु समान है, वह जीवित होकर भी मृतक के समान है।

Deshprem par nibandh in hindi

स्वदेश-प्रेम का तात्पर्य और उसकी उपयोगिता – स्वदेश-प्रेम से तात्पर्य देश के लिए केवल मर-मिटना ही नहीं,बल्कि अपने सेवाओं द्वारा देश की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि विभिन्न पक्षों का भी विकास करना स्वदेश-प्रेम कहलाता है। आज देश स्वतंत्र है। हमें आज सबसे बड़ा संघर्ष गरीबी से करना है। यदि हम आत्मनिर्भर होने के लिए जी-जान से प्रयत्नशील है तो यह हमारा सबसे बड़ा स्वदेश-प्रेम होगा। यह कोई आवश्यक नहीं है कि देश के लिए अपने प्राणों की बलि देकर ही स्वदेश-प्रेम का प्रदर्शन किया जाय। ऐसा प्रत्येक काम जिससे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रुप से देश का हित होता हो, स्वदेश-प्रेम कहलाता है। खेतों में काम करने वाले किसान, मिलो में कठोर परिश्रम करने वाले मजदूर, सीमा पर शत्रु से संघर्ष करने वाले सैनिकों की अपेक्षा कम स्वदेश-प्रेम नहीं रखते। हां, दोनों के क्षेत्र भिन्न-भिन्न अवश्य है किन्तु उद्देश्य सबका एक ही है। एक साहित्यकार अपनी साहित्य रचना से स्वदेश-प्रेम की वहीं लहर पैदा करना है, जिसे एक सैनिक सीमा पर अपने त्याग और बलिदान के रूप में करता है। 

स्वदेश-प्रेम के क्षेत्र – स्वदेश-प्रेम के क्षेत्र बहुत व्यापक है। हम अपने देश के विकास में कई प्रकार से सहयोग दे सकते है। जैसे एक सैनिक देश की सीमाओं की सुरक्षा करता है। और एक किसान कठिन परिश्रम करके अनाज उगता है, एक राजनेता देश की उन्नति के लिए हमेशा तत्पर रहता है,समाज सुधारक समाज का नवनिर्माण करके, धार्मिक नेता मानव धर्म निभा के, श्रमिक मेहनत करके, साहित्यकार राष्ट्रीय चेतना जगाकरके देशभक्ति की भावना को प्रदर्शित कर सकता है। जो लोग अपने कर्तव्य समझ करके बिना किसी स्वार्थ के देश हित में कार्य करते है, वास्तव में वही सच्चा देश भक्त कहलाता है।

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स्वदेश-प्रेम का वास्तविक स्वरूप – स्वदेश प्रेम हमें अपने तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठता है तथा जनहित एवं लोकहित का एक व्यापक क्षेत्र प्रदान करता है। वह हमें त्याग और बलिदान का पाठ पढ़ाता है। मानवीय हितो की ओर सोचने को बाध्य करता है। देश की सुरक्षा के साथ-साथ वहां की सामाजिक एवं सांस्कृतिक सुरक्षा की ओर भी ध्यान देता है। सच्चा देश-प्रेमी  वहीं है, जो देश के लिए निस्वार्थ भाव से बड़े से बड़ा त्याग कर सकता है। इसके अलावा स्वदेशी वस्तुओं का स्वयं उपयोग करता हो और दूसरो को उनके उपयोग के लिए प्रेरित करता है। वास्तव में सच्चा देशभक्त वहीं होता है, इसके अलावा सच्चा देशभक्त सत्यवादी, महत्वकांक्षी और कर्तव्य की भावना से प्रेरित रहता है, और जात और धर्म से ऊपर उठकर मानव सेवा में सदैव तत्पर रहता है।

उपसंहार – आज हमारा देश स्वतंत्र है। सदियों की गुलामी के पश्चात हमें स्वतंत्रता मिली है। इस स्वतंत्रता से हमारा उत्तरदायित्व भी बढ़ जाता है। हमें इस स्वतंत्रता को यूं ही नहीं गवाना है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इस स्वतंत्रता को सुख और समृद्धि का स्रोत बनाना है। यह तभी संभव हो सकता है, जब देश के प्रत्येक नागरिक में स्वदेश-प्रेम की भावना भरी जाय। जिस क्षेत्र में हो, जिस कार्य में लगा हो, अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की सीमा से ऊपर उठकर देश-हित चिंतन में लग जाय तो देश का सर्वांगीण विकास होते देर नहीं लगेगी। यह तभी संभव है जब हम देश-प्रेम के महत्व को स्वीकार करे।

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