साहित्य क्या है साहित्य किसे कहते – about of sahitya in hindi

 

About of sahitya in hindi ।। Sahitya kise kahte hai ।। Sahitya ki paribhasha ।। Essay on sahitya in hindi

साहित्य का अर्थ – साहित्य वह है, जिसमें हित की भावना निहित है। साहित्य मानव के सामाजिक संबंधों को दृण बनाता है, क्योंकि साहित्य में संपूर्ण मानव जाति का हित निहित रहता है। साहित्य द्वारा साहित्यकार अपने भावों और विचारों को समाज में प्रसारित करता है, इस कारण उसमें सामाजिक जीवन स्वयं मुखरित हो जाता है।

साहित्य और समाज का पारस्परिक सम्बन्ध – साहित्य और समाज का संबंध अन्योन्याश्रित है। साहित्य समाज का प्रतिबिंम्ब है। साहित्य का सर्जन जन-जीवन के धरातल पर ही होता है। समाज की समस्त शोभा, उसकी श्रीसम्पन्नता और मान- मर्यादा साहित्य पर अवलम्बित है। सामाजिक शक्ति या सजिवता, सामाजिक अशांति या निर्जीवता, सामाजिक सभ्यता या असभ्यता का निर्माण एकमात्र साहित्य ही है। कवि एवं समाज एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। अतः साहित्य से भीन्न कोई वस्तु नहीं है। यदि समाज शरीर है तो सहित्य उसका मस्तिष्क।

Essay on sahitya in hindi

साहित्य हमारे अमूर्त अस्पष्ट भावो को मूर्त रूप देता है और उनका परिष्कार करता है। वह हमारे विचारों की गुप्त शक्ति को सक्रिय करता है। साथ ही साहित्य गुप्त रूप से हमारे सामाजिक संगठन और जातीय जीवन के विकास में निरंतर योग देता रहता है। साहित्यकार हमारे महान विचारों को प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए हम उन्हें अपने जातीय सम्मान और गौरव का संरक्षण मानकर वशिष्ठ सम्मान प्रदान करते हैं। शेक्सपियर एवं मिल्टन पर अंग्रेजों को गर्व है। कालिदास, सूरदास एवं तुलसीदास पर हमें गर्व है। इस प्रकार साहित्य युग और परिस्थितियों की अभिव्यक्ति है। यह अभिव्यक्ति हृदय के माध्यम से होती है। कवि और साहित्यकार अपने युग को अपने आंसुओं से सीचत हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी उसके मधुर फल का आस्वादन कर सके।

Essay on sahitya in hindi

साहित्य पर समाज का प्रभाव – साहित्य और समाज का ठीक वही संबंध है, जैसे आत्मा और शरीर का जिस प्रकार बिना आत्मा के शरीर व्यर्थ है, ठीक उसी प्रकार बिना साहित्य के समाज का कोई अस्तित्व नहीं है। साहित्य के निर्माण में समाज का प्रमुख का हाथ होता है। इसलिए समाज में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव साहित्य पर बराबर पड़ता रहता है यदि कोई साहित्य सामाजिक परिवर्तनों से अछूता रह जाता है तो निश्चय ही वह निष्प्राण है। उदाहरण के लिए यदि आधुनिक युग में कोई साहित्यकार श्रृंगार की रचनाएं अलापने लगे तो वह निश्चय ही आज के सामाजिक परिवर्तनों से अछूता है और उसका साहित्य न तो युग का प्रतिनिधित्व कर सकने में समर्थ होगा और ना भावी पीढ़ी को कोई नई दिशा ही दे पाएगा।

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समाज पर साहित्य का प्रभाव – एक ओर जहां साहित्य समाज से अपनी जीवनी शक्ति ग्रहण करता है, दूसरी ओर वह समाज के पूर्णता बौद्धिक, मानसिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक विकास के लिए दिशानिर्देश करता है। साहित्य की छाया में समाज अपनी क्लान्ति और निराशा को दूर कर नवजीवन प्राप्त करता है। साहित्य से ही प्रेरणा लेकर समाज अपना भावी मार्ग निर्धारित करता है। समाज जहां युग-भावना में डूबा हुआ निष्क्रिय और निष्प्राण पड़ा रहता है, साहित्य उसमें युग-चेतना का स्वर भरता है, उसे जगाता है और उसे सारी परिस्थितियों से जूझने के लिए प्रोत्साहित करता है।

उपसंहार– इस प्रकार स्पष्ट है कि किसी जाति अथवा समाज का साहित्य उस जाति अथवा समाज की शक्ति अथवा सभ्यता का घोतक है वह उसका प्रतिरूप, प्रतिच्छाया, प्रतिबिम्ब कहला सकता है। दूसरी ओर साहित्य अपने समाज को जीवनी शक्ति प्रदान करता है उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। अतः साहित्य और समाज के पारस्परिक संबंधों का विवेचन करने के उपरांत साहित्य-सर्जना में विशेष सतर्कता रखने की आवश्यकता है।

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