हिंदी में नैतिक पाठ के साथ परिवार के बारे में लघु कथाएँ – Short stories about family with moral text in hindi

 

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नमस्ते दोस्तो स्वागत है हमारे ब्लॉग पर आज हम आपके लिए नैतिक कहानी लेकर आए हैं। दोस्तो हमारे जीवन में सबसे करीब लोग है तो, वे है हमारे परिवार लोग जो हमारे सुख-दुःख में हमेशा हमारे साथ खड़े रहते हैं। इसलिए हम हमेशा अपनी का ख्याल रखना चाहिए। ऐसे ही प्रेरणा दायक कहानी आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूं। 

समझदार राहुल – best moral story in hindi for elders

एक बड़े शहर में उत्कर्ष नाम का एक व्यक्ति अपनी पत्नी दिव्या और बेटे राहुल के साथ रहता था। एक दिन उत्कर्ष के बाबू अचानक शहर आ जाते हैं। बाबू जी को देखकर उत्कर्ष ने उनसे पूछता है। बाबू जी आप यहां कैसे? तब बाबू जी बोलते हैं, बेटा मुझे बहु ने फोन करके बुलाया है। तब उत्कर्ष करता है! पिताजी आप यात्रा करके आए हैं, थक गए होंगे आप चलिए आराम कर लीजिए। बाबू जी कमरे में जाकर आराम करने लगते हैं।
अब उत्कर्ष अपनी पत्नी दिव्या के पास जाकर पूछता है, दिव्या तुम्हने बाबू जी को बुलाया है। दिव्या बोली हां मैंने ही बाबू जी को फोन करके बुलाया हूं। तब उत्कर्ष पूछता है, आखिर क्यों? दिव्या बोलती है! राहुल को स्कूल ले जाना, सब्जी लाना, किराने का सामान लाना यह सब करना कितना मुश्किल है। मैं दिन भर घर के काम में व्यस्त रहती हूं। और आप ऑफिस चले जाते हैं। और इस महंगाई में नौकर रखना कितना मुश्किल है आखिर बाबूजी रहेंगे तो यह सब काम कर देंगे। तब उत्कर्ष बोला, हा बाबू जी रहेंगे तो यह सब कार्य कर दिया करेंगे, जिससे हम दोनों को और आराम हो जाएगा।
अब राहुल बाबूजी के साथ स्कूल आने-जाने लगा। और उसका अधिक समय बाबूजी के साथ बितने लगा। एक दिन उत्कर्ष ऑफिस से गुस्से में आया। और बोला यह टीवी का आवाज इतनी तेज क्यों है? बाहर तक इसकी आवाज जा रही है ।और यह बीच कमरे में चप्पल क्यों है? रखने का ढंग नहीं है। तभी दिव्या आती है, और बोलती है लगता है बाबूजी का चप्पल राहुल ने पहन रखी थी। वही यहां छोड़कर चला गया है। मैं इसे अभी हटा देती हूं। आप जाइए हाथ मुंह धो लीजिए मैं आपके लिए चाय बना कर लाती हूं। 
दिव्या चाय बनाकर लाती है। वह एक कप चाय उत्कर्ष को देती है, और एक कप बाबू जी को देती है। बाबू जी चाय पीने जाते हैं तभी राहुल पीछे से दौड़ता हुआ आता है और बाबूजी के गले में हाथ डाल देता है जिससे कप नीचे गिर जा कर टूट जाती है। यह देखकर उत्कर्ष को गुस्सा जाता है। और दिव्या से करता है बाबूजी को स्टील के गिलास में चाय देनी चाहिए थी ना। दिव्या कहती है, आज से बाबूजी को स्टील के कप में ही चाय दूंगी।
फिर अगले दिन दिव्या टेबल पर खाना लगा कर सबको बुलाती है। और सभी लोग खाना खाने आते हैं, तभी राहुल देखता है कि एक स्टील के बर्तन में खाना रखा है। राहुल कहता है कि मैं उसी स्टील के बर्तन में खाना खाऊंगा। दिव्या, राहुल से कहती हैं कि यह तुम्हारा बर्तन नहीं है। यह बाबू जी का है। इसमें बाबू जी खाएंगे। लेकिन राहुल जिद करने लगा कि मैं उसी थाली में खाऊंगा। उत्कर्ष, दिव्या से कहता है, रहने दो उसे खा लेने दो। लेकिन अब से बाबू जी का भोजन उनके कमरे में दे दिया करो। सभी लोग खाना खाते है, तभी खाना खाते समय राहुल के हाथ से बाबू जी की प्लेट गिर जाती हैं। जिससे उनका प्लेट टूट जाता है। जिसे देखकर दिव्या बोली। बाबू जी आप भी ना हद कर दी, अभी कल ही आपने चाय की कप तोड़ दी थी और आज प्लेट तोड़ दी। बाबू जी आंसू छिपाते हुए सिर्फ पानी पीकर वहा चले गए। दिव्या अब बाबू जी को रोज स्टील के बर्तन में खाना देने लगी। 
कुछ दिन बाद राहुल का जन्मदिन आया। उस दिन उत्कर्ष और दिव्या बहुत खुश थे, और वह राहुल से पूछते हैं। राहुल बेटा तुम्हें गिफ्ट में क्या चाहिए। तब राहुल बोला मा मुझे स्टील के दो बर्तन चाहिए। इस पर दिव्या पूछती हैं, बेटा तुम्हें स्टील के बर्तन क्यों चाहिए। तब राहुल बोला, जब आप दोनों बूढ़े हो जाएंगे तो आप दोनों को स्टील के बर्तन में खाना देने के लिए, जैसे आप लोग दादा जी को देते हैं। यह सुनकर उत्कर्ष और दिव्या सन्न रह जाते है। छोटे से बच्चे की समझदारी भारी बात सुनकर, वे अपने किए पर पक्षतावा करते हैं। उत्कर्ष तुरंत दौड़ कर बाबू जी के पास जाता है। और उनसे माफी मांगता है। और उन्हें लेकर आता है। और टेबल पर बैठाकर अपने हाथो से उन्हें खाना देता है। अब सभी लोग एक साथ भोजन करने लगते हैं।

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