भ्रष्टाचार की समस्या पर निबन्ध हिंदी में – short essay on corruption in hindi

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प्रस्तावना – सामान्य रूप से नीति या विधि विरूद्ध कोई भी कार्य भ्रष्टाचार कि परिभाषा में आता है। पर इस समय पूरे समाज में राजकार्य में ऐसी अराजकता का राज है, मानो सर्वत्र भ्रष्टाचार का ही बोलबाला हो। कोई नियम या कानून की बात सोचता ही नहीं, हर एक उस तोड़ने की फ़िक्र में दिखाई देता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि ‘इस समय पूरा देश भ्रष्टाचार के हाथो में बंधक बन गया है।

सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण  Causes of corruption in public life 

वर्तमान समय में सार्वजनिक जीवन भ्रष्टाचार के दलदल में फस गया है। समाज के अधिकांश क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के रूप दिखाई देते है। भ्रष्टाचार के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण इस प्रकार है।
राजनीतिक संरचना में परिवर्तन – प्राचीन काल में समाज छोटे-छोटे समूहों समुदायों में विभाजित है जिनमें हितों की समानता पाई जाती थी किंतु वर्तमान युग में इनका स्वरूप परिवर्तित हो गया है। बड़े बड़े समूह समुदायों में कतिपय ऐसी व्यवस्थाएं उत्पन्न हो गई है कि उच्च पदों पर बैठे लोग दूसरों के हितों की उपेक्षा करके अपने लिए अधिकाधिक लाभ उठा लेते हैं। इनमें पुलिस प्रशासन, राजनीतिज्ञ, राजपत्रित अधिकारी तथा सफेदपोश अपराधी प्रमुख हैं।
प्रजातांत्रिक व्यवस्था के दोष – प्रजातांत्रिक व्यवस्था में दलीय प्रणाली का महत्व होता है। दल को समर्थन देने वाला व्यक्ति अपने निजी हितों के अनुरूप शाासक दल से इच्छित कार्य करा लेता है। दलगत राजनीति भी भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देती है। अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए सत्ताधारी दल सभी प्रकार के उचित अनुचित कार्य करता है। भारत में दल बदल की राजनीति ने भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है।
गरीबी और बेकारी – गरीबी और बेकारी भी भ्रष्टाचार के लिए उत्तरदायी कारण है। भूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं कर सकता है। गरीबी के कारण व्यक्ति भ्रष्ट आचरण करता है। इसी प्रकार से मुक्ति पाने के लिए भी व्यक्ति घुस या रिश्वत आदि देकर नौकरी प्राप्त करते है, जिससे भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
व्यापार तथा राजनीतिक का घनिष्ठ संबंध – यह भी भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है। प्रारंभ से ही राजनीतिज्ञ चुनाव के समय बड़े बड़े व्यापारियों तथा उद्योग पतियों से आर्थिक सहायता प्राप्त करते हैं तथा चुने जाने पर बदले में उन्हें अनेक प्रकार से लाभान्वित कराते रहते हैं। पिछले दशकों में घटित बोफोर्स घोटाला तथा प्रतिभूति घोटाला इसके प्रमुख उदाहरण हैं। व्यापारी वर्ग राजनीतिज्ञों को घूस या रिश्वत देकर टैक्स चोरी कालाबाजारी मिलावटी सामान में बिक्री जमाखोरी करता रहता है। तथा पकड़े जाने की स्थिति में राजनीतिज्ञों का संरक्षण प्राप्त होने से बच भी जाता है। 
चारित्रिक एवं नैतिक पतन – चारित्रिक तथा नैतिक पतन भी भ्रष्टाचार के उत्तरदायी कारण है। वर्तमान समय में व्यक्ति का सम्मान धन के आधार पर होता है। भले ही वह अनुचित तरीके से कमाया गया हो। ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा तथा सच्चाई की खिल्ली उड़ाई जाती है जबकि सफेदपोश अपराधियो की प्रतिष्ठा होती है। चरित्र तथा नैतिक पतन के कारण ही आज के समाज में सर्वत्र भ्रष्टाचार को बढ़ावा प्राप्त है।
शिक्षा का अभाव –  आजादी के 71 वर्षों बाद भी देश में केवल 74.4 प्रतिशत लोग ही शिक्षित है और अशिक्षितो की अनभिज्ञता के कारण सरकारी अधिकारी तथा कर्मचारी उनसे किसी न किसी प्रकार से धन ऐंठ लेते हैं।

भ्रष्टाचार के प्रसार – समाज का कोई अंग नहीं होगा जो इस समय भ्रष्टाचार से मुक्त हो। विद्यार्थी समाज को ही लीजिए, अधिकतर विद्यार्थी वर्षभर परीक्षा में नकल की योजना बनाते रहते हैं, अधिकांश विधार्थी परीक्षा के लिए पढ़ाई और तैयारी पर उनका ध्यान ही नहीं रहता। जितना की परीक्षा में अवैध साधनों के प्रयोग के तरीके सोचने पर। अगर सरकार ने एक नकल विरोधी कानून बनाया तो उसका घोर विरोध होने लगता है। दूसरे दल ने घोषणा की कि यदि उसकी सरकार बनी तो उनका पहला काम इस नकल विरोधी कानून को निरस्त करना होगा। सचमुच उसकी घोषणा का असर हुआ, आम चुनाव में उसकी जीत हुई और सत्ता संभालते ही उस दल की सरकार नकल विरोधी कानून का कार्यान्वयन स्थगित कर दिया। 

किसी भी दिन का कोई भी दैनिक पत्र उठकर देखा जा सकता है, की भ्रष्टाचार इस समय समाज पर किस तरह हावी है। इसके अनगिनत रूप है और इसमें लगातार वृद्धि होती जा रही है। कानून केवल देखने को बनते है, उसके उल्लंघन की बात पहले ही सोच ली जाती है। कोई भी कार्य हो बिना घुस या रिश्वत के नहीं होता। हर कार्य के लिए रिश्वत की रकम तय है। चतुर वे है जो चुपके से उसे अदा करते है और सपना उल्लू सीधा करते हैं। यदि कोई नैतिकतावादी किसी अधिकारी या बाबू से उलझ गया तो समझो उसकी शामत आ गयी है। अतः तब उसे नौ के नब्बे देने पड़ जाते हैं। यह बात हर दिन सरकारी कार्यालय में सम्पन्न होने वाले कार्यों के बारे में कही जा रही है। करोड़ों और अरबों-खरबों रुपये के घोटालों की बात तो मामूली आदमी की समझ में भी नहीं अती। ऐसे घोटालों से लखपति या करोड़पति बने कितने ही राजनेता इस समय भी सत्ता का सुख भोग रहे है। भ्रष्टाचार का दुष्कृत्य ऐसी है कि उसके ओर-छोर का पता लगाना सरकार के लिए भी टेढ़ी खीर होती है और उधर भ्रष्टाचार के आरोपी येन-केन-प्रकारेण सत्ता में बने रहते है। न उन्हें विवेक का दंश तंग करता है, न सामाजिक कलंक का टीका उनके माथे पर दिखाई देता है, प्रत्युत उनके अनुयायियों की संख्या हर दिन बढ़ती ही जाती है।

भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम – Side effects of corruption

(1) भ्रष्टाचार के परिणामत‌: वह वफादारी के स्थान पर स्थानीय वफादारी में वृद्धि होती है तथा देश और सामुदायिक हितों के स्थान पर व्यक्तिगत और स्थानीय हितों को अधिकाधिक महत्व प्रदान किया जाता है। इसके कारण देश की राजनैतिक स्थिरता को और भी अधिक गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
(2) भ्रष्टाचार के परिणाम स्वरुप राष्ट्रीय चरित्र, एकता एवं नैतिकता का भी पतन होता है। भ्रष्टाचार केवल अपना निजी हित स्वार्थ ही सोचता है। राष्ट्रीय सामुदायिक हीतो का नहीं।
(3) भ्रष्टाचार के कारण संपूर्ण समाज में निराशा तनाव तथा संघर्ष की प्रवृत्ति का जन्म होता है। भ्रष्टाचार के कारण अयोग्य व्यक्ति योग्य व्यक्तियों की रोजी, रोटी और अधिकार हड़प कर लेता है। इस स्थिति में सामाजिक तनाव और संघर्ष का उत्पन्न होना स्वभाविक कार्य है।
(4) भ्रष्टाचार के परिणाम स्वरुप बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ती है। बड़े-बड़े व्यावसायिक बजट आने के पूर्व ही बाजार का सारा माल खरीद लेते हैं तथा बाद में मनमानी कीमतों में बचते हैं। इस प्रवृत्ति के कारण बाजार में चोर बजारी भी बढ़ने लगती है। वस्तुओं का कृत्रिम अभाव हो जाता है तथा इसके परिणाम स्वरूप महंगाई भी बढ़ जाती है।

भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु सुझाव – Tips for eradicating corruption in hindi

भ्रष्टाचार का निवारण – भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए देश की कानून व्यवस्था में आमूल-चूक परिवर्तन किया जाना चाहिए। लोक जीवन में हानि पहुंचने वाले प्रत्येक भ्रष्ट आचरण के लिए कठोर एवं स्पष्ट कानून बनाने चाहिए। प्रशासनिक ढांचे में सुधार किया जाय। भ्रष्टाचार को नियंत्रण करने के लिए देश के लिए देश की कर प्रणाली को सरल तथा स्पष्ट बनाया जाए ताकि कर बचाने के लिए सांठ-गांठ तथा भ्रष्ट तरीको को न अपनाया जा सके। भ्रष्टचार को रोकने के लिए भ्रष्टाचार सम्बन्धी सभी मामलों की जांच को चुस्त एवं निष्पक्ष बनाया जाए, इसके साथ ही भ्रष्टचार के दोषी व्यक्तियों को कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए। यह तभी संभव है, जब राजनेता और सरकारी अधिकारी पूरी तरह इमानदार हो। किसी भी स्थिति में भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए शिक्षा प्रणाली में भी सुधार करना चाहिए। प्रारम्भ में ही बच्चो को ऐसी शिक्षा दी जाए, जिससे वे भ्रष्टाचार के विरूद्ध हो।

उपसंहार –  इस समय हमारे देश के सामने जितनी चुनौतियां है उनमें भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती है। कोई नहीं बता सकता की इसका अंत किस तरह होगा और कब, यह देेश को लगातार आर्थिक रूप से कमजोर कर रहा है। भ्रष्टाचार के लिए सरकार को कड़े नियम बनाने होंगे जिससे कि और बुराइयां देश में व्याप्त न हो।

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