अकबर बीरबल की मजेदार कहानी – akbar stories ibirbal n hindi with akbar birbal kahani

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Short story नमस्ते दोस्तो स्वागत है हमारे ब्लॉग पर आज हम आपके लिए अखबर और बीरबल की मजेदार और प्रेरणा दायक कहानी आप सभी के साथ शेयर कर रहे हैं। उम्मीद करता हूं कि यह आपको जरूर पसंद आयेगा।

 

गई इज्जत वापस नहीं आती – akhabar and birabal motivational story in hindi

 
अकबर को इत्र का बहुत शौक था। वह देश-विदेश से अपने लिए कीमती इत्र मंगवाता रहता था। एक दिन बादशाह की वर्षगांठ थी। महल के बगीचे में विशाल मंडल बनाया गया था। उसमें मखमल के गद्दी-तकिये लगाए गए थे। उन पर बादशाह अकबर के दरबारी और मेहमान बैठे हुए थे। एक के बाद एक मेहमान आते अकबर को भेंट देते और मंडप में अपनी जगह बैठ जाते।
अकबर का एक दरबारी मेहमानों को पान-सुपारी और इत्र का फाहा दे रहा था। अकबर के पास बैठे हुए एक मेहमान को इत्र का फाहा देते समय इत्र की एक बूंद गड्डी पर गिर गई। अकबर ने उसे देखा। तुरंत ही उसने एक उंगली से इत्र की बूंद लेने का प्रयत्न किया, लेकिन व्यर्थ बूंद गद्दी की रूई में गहराई तक उतर चुकी थी।
पास बैठा बीरबल यह देख रहा था। अकबर कि नजर उस पर पड़ी, तो वह शरमा गया। बीरबल ने तुरंत अपना मुंह दूसरी ओर फेर लिया, जैसे उसने कुछ देखा ही नहीं। लेकिन अकबर के मन से यह बात नहीं निकली। पूरी रात अकबर को नींद नहीं आई। उसके मन में तरह-तरह के विचार आते रहे बीरबल मेरे विषय में क्या सोचता होगा? अरे मैंने भी यह क्या किया, इत्र की एक बूंद पर अपनी नियत बिगाड़ दी! वह किसी से कह देगा तो? लोग कहेंगे, इतना बड़ा बादशाह और इतना कंजूस अब मैं बीरबल को दिखा दूंगा कि मेरे मन में इत्र की कोई कीमत नहीं है। उसे भी मालूम हो कि कीमती से कीमती इत्र गिर जाए, तो भी मैं उसकी परवाह नहीं करता।
दूसरे ही दिन अकबर ने महल के हौज को खाली कराया। उसके पास इत्र की जितनी शीशियां थी, उसने सारी हौज में उड़ेल (डाल) दी। फिर शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया, जिसे भी इत्र चाहिए, वह बादशाह के हौज में से ले जाए।
लोगों ने झुंड के झुंड महल के हौज के पास इकट्ठे हो गए। हौज के पास अकबर अभिमान से सीना तानकर खड़ा था। उसने सोचा अब बीरबल को मालूम होगा कि बादशाह अकबर के लिए इत्र की कोई कीमत नहीं है।
थोड़ी देर बाद बीरबल वहां आ पहुंचा। उसे देखकर अकबर ने गर्व से कहा, कहो बीरबल! मजे में तो हो? इधर देखो। कितने सारे लोग यहां इत्र लेने आए हैं। बीरबल ने शांतिपूर्वक जवाब दिया, जहांपनाह, बूंद से गई प्रतिष्ठा हौज से नहीं लौटटी!
इत्र की एक बूंद के लिए अकबर ने बीरबल के सामने अपनी आबरू को दी। वह आबरू हौज़ भरकर इत्र लुटा देने पर भी वापस नहीं मिली। बीरबल की बात सुनकर अकबर बहुत उदास हो गया। पर बीरबल को अपनी गलती का एहसास हो गया। वह बादशाह की उदारता की प्रशंसा करने लग गया। बादशाह के चेहरे पर मुस्कान खिल गई।

 
 
 
 

कलमुहा कौन – Akbar and birabal story in hindi

 

एक दिन सुबह के समय अकबर अपने महल के झरोखे में खड़ा था। उसी समय एक फेरीवाला रास्ते से गुज़रा। फेरीवाले पर बादशाह की नजर पड़ी, तो उसने बादशाह को सलाम किया। फिर वह वहां से आगे बढ़ गया।
अकबर स्नान कर दरबार में जाने के लिए तैयार हुआ, तभी समाचार मिला कि उसकी बेगम का भाई दुर्घटना में घायल हो गया है। दरबार में जाने के बदले वह अब अपने साले को देखने चला गया। लौटते समय महल की सीढ़ियों पर चढ़ते-चढ़ते वह फिसल गया। और उसके पैर में मोच आ गई। पैर में पट्टी बंधवा कर वह दरबार में पहुंचा। उस दिन बीरबल दरबार में नहीं आया, इसलिए कोई काम नहीं हो सका।
उब कर राजा अकबर अपने महल में लौट आया। उसने थोड़ी देर तक आराम करने का विचार किया। उसे ज़रा-सी झपकी आई, तभी बेगम ने उसे भोजन करने के लिए बुलाया। आज भोजन में उसकी रुचि नहीं थी, फिर भी वह भोजन करने बैठा। उसने पहला ग्रास मुंह में डाला ही था कि अचानक कहीं से एक मक्खी उसकी थाली में आ गिरी। खाना छोड़ कर वह खड़ा हो गया। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। बेगम से इस बात पर उसकी कहा-सुनी हो गई बेगम भी उससे नाराज़ हो गई।
जैसे-तैसे वह दिन पूरा हुआ। शाम को अकबर महल की छत पर गया। छत पर बैठकर अकबर सोचने लगा, आज मेरा पूरा दिन खराब गया। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था। आज ही ऐसा क्यों हुआ? इस तरह विचार करते-करते उसे उस फेरीवाले की याद आई। उसने सोचा सुबह के समय मैंने उस कलमुहे फेरी वाले का मुंह देखा था, इसलिए आज मेरा पूरा दिन खराब गया।
दूसरे दिन बादशाह के हुक्म से सिपाही उस फेरीवाले को पकड़कर दरबार में ले आए। बादशाह ने उसे फांसी की सजा सुनाई। सुबह फेरी वाले का मुंह देखने से वह दिनभर किस तरह परेशान रहा, अकबर ने फेरीवाले की उपस्थिति में ही सारा वाकया दरबारियों से कह सुनाया। फेरीवाले ने बीरबल से मिलने की आज्ञा मांगी बादशाह ने उसे आज्ञा दे दी। बीरबल ने उसकी बात सुनकर उसे समझा दिया कि अब उसे क्या करना है।
फांसी के दिन सिपाही फेरी वाले को फांसी के तख्ते के पास ले गए। फांसी देने से पहले जल्लाद ने उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी। उसने कहा, एक दिन सुबह बादशाह ने मेरा मुंह देखा था, इसलिए उन्हें कुछ तकलीफें उठानी पड़ी। लेकिन उसी दिन मैंने उनका मुंह देखा था, इसलिए मुझे आज फांसी पर चढ़ना पड़ रहा है। जल्लाद साहब! आप दरबार में जाकर बादशाह, दरबारी और नगर की जनता को मेरा यह संदेश पहुंचा दे कि अब से सुबह के समय कोई बादशाह का मुंह न देखें। जो भी व्यक्ति  सुबह के समय बादशाह का मुंह देखेगा, उसे मेरी तरफ फासी पर चढ़ना पड़ेगा।
फेरीवाले की यह बात सुनकर जल्लाद चिंता में पड़ गया। कैदी की अंतिम इच्छा पूरी किए बिना उसे फांसी पर नहीं चढ़ाया जा सकता। अतः जल्लाद दरबार में गया। वहां जाकर उसने बादशाह को फेरीवाले का संदेश दिया। बादशाह ने तुरंत फेरी वाले को दरबार में बुलाया।
फेरीवाले को दरबार में लाया गया। बादशाह ने उससे कहा, मैं समझ गया, बीरबल की सलाह से ही तूने इस तरह की समझदारी की बात की है। मुझसे वाकई भूल में तेरे साथ अन्याय हो रहा था। जा, मैं तेरी सजा माफ करता हूं।
बादशाह ने फेरीवाले को पांच सौ मुहरे भेंट में दी। फेरीवाला खुश होकर अपने घर गया। एक निर्दोष फेरीवाले के प्राण बचाने के लिए बादशाह ने बीरबल का बहुत आभार माना।

 

 

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